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कविता

रात की बात

रमानाथ अवस्थी


चंदन है तो महकेगा ही
आग में हो या आँचल में

छिप न सकेगा रंग प्यार का
चाहे लाख छिपाओ तुम
कहनेवाले सब कह देंगे
कितना ही भरमाओ तुम

घुँघरू है तो बोलेगा ही
सेज में हो या सांकल में

अपना सदा रहेगा अपना
दुनिया तो आनी-जानी
पानी ढूँढ़ रहा प्यासे को
प्यासा ढूँढ़ रहा पानी
पानी है तो बरसेगा ही
आँख में हो या बादल में

कभी प्यार से कभी मार से
समय हमें समझाता है
कुछ भी नहीं समय से पहले
हाथ किसी के आता है

 

समय है तो वह गुज़रेगा ही
पथ में हो या पायल में

बड़े प्यार से चाँद चूमता
सबके चेहरे रात भर
ऐसे प्यारे मौसम में भी
शबनम रोई रात भर

 

दर्द है तो वह दहकेगा ही
घन में हो या घानल में

 


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